अध्यक्ष‚ हिन्दी–संस्कृत विभाग
सेन्ट स्टीफन्स कॉलेज
दिल्ली–110007
****************
तपन देखे
आँधी ने खोल दिये
वर्षा के द्वार।
माँ दिला दो न
मुझे एक मुखौटा
जीना सीख लूँ।
बुझा न कभी
बढ़े दामों की प्यास
वर्षा ऋतु भी।
बिजुरी नहीं
छुरी लपलपाती
अन्धी राहों में।
नभ–सर में
करते जल क्रीड़ा
मेघ–मतंग।
रच अल्पना
चली बक–पंक्तियाँ
नीलाम्बर में।
पथराव से
होता घायल सत्य
विपक्षी नहीं।
सेन्ट स्टीफन्स कॉलेज
दिल्ली–110007
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तपन देखे
आँधी ने खोल दिये
वर्षा के द्वार।
माँ दिला दो न
मुझे एक मुखौटा
जीना सीख लूँ।
बुझा न कभी
बढ़े दामों की प्यास
वर्षा ऋतु भी।
बिजुरी नहीं
छुरी लपलपाती
अन्धी राहों में।
नभ–सर में
करते जल क्रीड़ा
मेघ–मतंग।
रच अल्पना
चली बक–पंक्तियाँ
नीलाम्बर में।
पथराव से
होता घायल सत्य
विपक्षी नहीं।
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