कमलेश भट्ट ‘कमल’
के एल–154 कविनगर
गाजियाबाद (उ०प्र०)
*********************
फसलें झूमीं
वेदमन्त्र गूंजा है
खेतों में फिर।
सूर्य की चोरी
धरती का सौन्दर्य
निरखे चाँद।
लेता ही रहा
सारी रात डकारें
अघाया फ्रिज।
हाथ उठाये
आशीर्वाद देती हैं
स्ट्रीट–लाइटें।
वन–प्रान्त
बतियाते हैं पेड़
एक दूजे से।
चाँदनी नहीं
पूनम की रातों में
फैला है डर।
सीना ताने हैं
कमाऊ पूत जैसे
पकी फसलें।
के एल–154 कविनगर
गाजियाबाद (उ०प्र०)
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फसलें झूमीं
वेदमन्त्र गूंजा है
खेतों में फिर।
सूर्य की चोरी
धरती का सौन्दर्य
निरखे चाँद।
लेता ही रहा
सारी रात डकारें
अघाया फ्रिज।
हाथ उठाये
आशीर्वाद देती हैं
स्ट्रीट–लाइटें।
वन–प्रान्त
बतियाते हैं पेड़
एक दूजे से।
चाँदनी नहीं
पूनम की रातों में
फैला है डर।
सीना ताने हैं
कमाऊ पूत जैसे
पकी फसलें।
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