08 May 2011

श्याम निर्मम


पहाड़ी धुन
प्यार के सन्तूर की
ध्यान से सुन


बादल घिरे
तड़पे तो बहुत
रोये क्यों नहीं


हवा महकी
खुला जूड़ा किसी का
चाह बहकी


कड़वा नीम
नब्ज देखे बिना ही
बना हकीम


उनकी हँसी
जैसे जूही नहयी
केतकी फूली


फील्ड–नभ में
मैच खेलते दोनों
मेघ–बिजुरी


कभी बहरा
गूँगा बनेगा कभी
प्यार उनका

-श्याम निर्मम

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