‘पपिहा’‚ 169–देवीनगर
मेरठ–250001
******************
नहा–धोकर
कमसिन दोशीजा
सुबह झाँकी।
रंगों का मेला
सनकी चित्रकार
अकेला खेला।
रजनी-गन्धा
हँसती सारी रात
सुबह सोती।
पीपल दादा
कहानियाँ सुनते
दिन भर की।
बाँसों के वन
मनचली हवा ने
बजाई सीटी।
चिनार पत्ते
कहाँ पाई ये आग
बता तो भला?
नीचे घाटी में
डैफोडिल खिले हैं
दीये जले हैं।
मेरठ–250001
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नहा–धोकर
कमसिन दोशीजा
सुबह झाँकी।
रंगों का मेला
सनकी चित्रकार
अकेला खेला।
रजनी-गन्धा
हँसती सारी रात
सुबह सोती।
पीपल दादा
कहानियाँ सुनते
दिन भर की।
बाँसों के वन
मनचली हवा ने
बजाई सीटी।
चिनार पत्ते
कहाँ पाई ये आग
बता तो भला?
नीचे घाटी में
डैफोडिल खिले हैं
दीये जले हैं।
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