175‚ मोरी पाड़ा
मेरठ–250002 (उ०प्र०)
****************
साँझ होते ही
अँधियारा बौराया
घूमता फिरा।
पगली हवा
बतियाते न थकी
सो गए पेड़।
गन्धित मन
तुम्हारी नेह–छांव
आस–पास ही।
वसन्त आया
छुआ ही नहीं और
चला भी गया।
गुंडा सूरज
घूर घूर देखता
धरा बेचारी।
खो गए मेघ
पुकार कर थका
शिखी–युगल।
जाड़े की धूप
आओ बैठो तो‚ फिर
दोष न देना।
मेरठ–250002 (उ०प्र०)
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साँझ होते ही
अँधियारा बौराया
घूमता फिरा।
पगली हवा
बतियाते न थकी
सो गए पेड़।
गन्धित मन
तुम्हारी नेह–छांव
आस–पास ही।
वसन्त आया
छुआ ही नहीं और
चला भी गया।
गुंडा सूरज
घूर घूर देखता
धरा बेचारी।
खो गए मेघ
पुकार कर थका
शिखी–युगल।
जाड़े की धूप
आओ बैठो तो‚ फिर
दोष न देना।
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