45‚ गोखले विहार मार्ग
लखनऊ (उ०प्र०)
****************
बुलाओ मुझे
पुआल के बिछौने
सोना चाहूँ मैं।
धूप में वह
सूखती रही‚ पर
आँसू न सूखे।
स्वप्न–कटोरे
भरी–भरी आँखों से
छलक गए।
मालिन हँसी
सुई–बिंधी माला–सी
चढ़ा दी गई।
जो चाहे कहो
हमें सुन लेने दो
रोम–रोम से।
काँटों का वन
कैसे पार करूँ मैं
फूलों–सा मन।
अपना घर
धरती पर नहीं
कहाँ बसूं मैं।
लखनऊ (उ०प्र०)
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बुलाओ मुझे
पुआल के बिछौने
सोना चाहूँ मैं।
धूप में वह
सूखती रही‚ पर
आँसू न सूखे।
स्वप्न–कटोरे
भरी–भरी आँखों से
छलक गए।
मालिन हँसी
सुई–बिंधी माला–सी
चढ़ा दी गई।
जो चाहे कहो
हमें सुन लेने दो
रोम–रोम से।
काँटों का वन
कैसे पार करूँ मैं
फूलों–सा मन।
अपना घर
धरती पर नहीं
कहाँ बसूं मैं।
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