08 May 2011

सत्यानन्द जावा



14–ए / 50
डब्ल्यू० ई० एरिया‚
करौल बाग
नई दिल्ली–110005
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लटक रहा
आयु की खूंटी पर
सांस का कुर्ता।




बर्फीली तन
जला आग सदृश
छुआ किसने।




सागर पास
रही फिर भी प्यासी
तट की रेत।




बहा ले गई
पानी की इक मौज
रेत–घरौंदा।




हाँ‚ कमीना हूँ
मतलबी हूँ‚ मुझे
यहाँ जीना है




डबल रोटी
चिड़िया को फेंकी थी
ले गया कौआ।




लाई पवन
सोंधी मिट्टी की बास
तू आस–पास।

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