08 May 2011

डॉ0 मोती लाल जोतवाणी


बी–14‚दयानन्द कालोनी
लाजपत नगर
नई दिल्ली–110024
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जाडे. की धुन्ध
तो भी रोशनी बाकी
इन दिलों में।




तारे सितारे
ठौर–ठौर पर ये
डोर से बँधे।




ठंडा मौसम
राख ही राख‚ पर
तुम अलाव।




चन्द्रमा नहीं
रोशनी फिर भी है
दूर तारों की।




कैसे चलतीं
चींटियाँ कतार में
कौन सिखाता?




पांवों में काँटे
यह फूल फिर भी
महकता है।




सूर्य–किरण
दुबलती–पतली है
बहुत तेज।

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