08 May 2011

झीणा भाई देसाई ‘स्नेह रश्मि’


64‚ शारदा सोसाइटी
अहमदाबाद–380007
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कुहुक ध्वनि
रात जाग देखूं तो
बारी में चन्द्र।




आँधी में थकी
हवा सहज लेटी
फूल शय्या में।




छप्पर चुए
भीगे गोदी में शिशु
माँ के आँसू से।




खाली झोंपडे.
दोनों तट निरखे
नदी की बाढ़।




मछुआ डाले
जाल फंसे न पूनो
किसी भी भांति।




बादल अब  
गरजें न बरसें
रंगोली पूरें।




छितरा नीड़
आतुर लेने गोद
बिखरे पत्ते।

3 comments:

सुनीता अग्रवाल "नेह" said...

बेहतरीन

विभा रानी श्रीवास्तव said...

बहुत बढ़िया

अलंकार आच्छा said...

बहुत ही प्रभावी ....

छप्पर चुए
भीगे गोदी में शिशु
माँ के आंसू से।

अत्यंत मार्मिक ....