08 May 2011

जवाहर ‘इन्दु’


272‚ सेक्टर–III
दूरभाष नगर
रायबरेली–229010
(उ०प्र०)
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बरसे मेह
आँगन में बिखरे
खोल–बताशे।




खेतों के पार
साँझ का आकाश क्यों
खोले है द्वार।




सिन्दूरी शाम
सूरज झुककर
करे प्रणाम।




पंचम काका
झरबेरी–सी झीनी
बाँधे पगड़ी।




द्वार हैं खडे.
मौर धरे शीश पे
आम के वृक्ष।




बिना जल के
विधवा की मांग–सी
सूखी नहर।




हवा उड़ाए
आकाश में पतंग
शिशु का मन। 

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