08 May 2011

डॉ0 जीवन प्रकाश जोशी


हिन्दुस्तान टाइम्स‚ सी०जी०एच०एम०
फ्लैट ए–1‚ ब्लाक–3‚ मयूर विहार
फेज–1‚ नई दिल्ली–61
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बुझा सूरज
क्षितिज की आड़ में
हँसी रजनी।



कुहासे में से
निकलती किरण
जैसे जयश्री।



मैंने उगाया
वे उगे‚ फले नहीं
काँटों–से चुभे।



सर्पिल राह
आकाशगंगा हुई
जितनी चली।



तूफान उठा
उखड़े ऊँचे पेड़
जमी है घास।



फुनगी पर
फुदकी बैठी‚ मानो
मेरी उमंग।



आ पतझर
आ‚ गिरा पीले पात
ला हरापान।

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