08 May 2011

राम कृष्ण ‘विकलेश’


शुतरखाना‚
बांदा–210001 (उ०प्र०)
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काले मेघों में
खींच रहे बगुले
उज्ज्वल रेखा।



सूखे ठूंठ में
वर्षा ने उगा दी है
हरी कोंपल।



धरा की धूल
छूने लगी आकाश
हवा के साथ।




औरों के दीप
हमें देंगे उजाला
हम किसे दें ?




धूप के हाथों
लुटती रही गन्ध
खिले फूल की।




ओस की बूँद
दूब की नोक पर
हीरे की कनी।




उषा ने बांधी
क्षितिज के हाथों में
सूर्य की राखी।

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